1- कीमती पत्थर
एक युवक कविताएं दिखता था, लेकिन उसके इस गुण का कोई मूल्य नहीं समझता था | घरवाले भी उसे ताना मारते रहते कि तुम किसी काम के नहीं, बस कागज काले करते रहते हो | उसके अंदर हीन - भावना घर कर गई | उसने एक जौहरी मित्र को अपनी यह व्यथा बताई | जौहरी ने उसे एक पत्थर देते हुए कहा - जरा मेरा एक काम कर दो |यह एक कीमती पत्थर है | कई तरह के लोगों से इसकी कीमत का पता लगाओ, बस इसे बेचना मत | युवक पत्थर लेकर चला गया| कबाड़ी वाला बोला - पांच रुपये में मुझे ये पत्थर दे दो |
फिर वह सब्जी वाले के पास गया | उसने कहा तुम एक किलो आलू के बदले यह पत्थर दे दो, इसे मैं बाट की तरह इस्तेमाल कर लूंगा | युवक मूर्तिकार के पास गया | मूर्तिकार ने कहा - इस पत्थर से मैं मूर्ति बना सकता हूं, तुम यह मुझे एक हजार में दे दो | आखिरकार युवक वह पत्थर लेकर रत्नों के विशेषज्ञ के पास गया | उसने पत्थर को परखकर बताया - यह पत्थर बेशकीमती हीरा है जिसे तराशा नहीं गया | करोड़ों रुपए भी इसके लिए कम होंगे | युवक जब तक अपने जौहरी मित्र के पास आया, तब तक उसके अंदर से हीन भावना गायब हो चुकी थी | और उसे एक संदेश मिल चुका था |
मोरल : हमारा जीवन बेशकीमती है, बस उसे विशेषज्ञता के साथ परखकर उचित जगह पर उपयोग करने की आवश्यकता है |
2- ज्ञानी पुरुष और निंदा
एक व्यापारी एक नया व्यवसाय शुरू करने जा रहा था, लेकिन आर्थिक रूप से मजबूत ना होने के कारण उसे एक हिस्सेदार की जरूरत थी | कुछ ही दिनों में उसे एक अनजान आदमी मिला और वह हिस्सेदार बनने को तैयार हो गया | व्यापारी को उसके बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं था | अतः पहले वह हिस्सेदार बनाने से डर रहा था | किंतु थोड़ी पूछताछ करने के बाद उसने उस आदमी के बारे में विचार करना शुरू किया |
एक-दो दिन बीतने के पश्चात व्यापारी को उसका एक मित्र मिला जोकि बहुत ज्ञानी पुरुष था | हाल समाचार पूछने के बाद व्यापारी ने उस आदमी के बारे में अपने मित्र को बताया और अपना हिस्सेदार बनाने के बारे में पूछा | आपका मित्र उस आदमी को पहले से ही जानता था, जोकि बहुत कपटी पुरुष था वह लोगों के साथ हिस्सेदारी करता फिर उन्हें धोखा देता था |
चूंकि उसका मित्र एक ज्ञानी पुरुष था | अतः उसने सोचा दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए और उसने व्यापारी से कहा -" वह एक ऐसा व्यक्ति है जो आसानी से तुम्हारी विश्वास जीत लेगा |" यह सुनने के बाद व्यापारी ने उस आदमी को अपना हिस्सा बना लिया | दोनों ने काफी दिन तक मेहनत की और बाद में जब मुनाफे की बात आई तो वह पूरा माल लेकर चंपत हो गया |
इस पर व्यापारी को बहुत दुख हुआ | वह अपने मित्र से मिला और उसने सारी बात बतायी और उसके ऊपर बहुत गुस्सा हुआ इस पर उसके मित्र ने कहा, मैं थारा शास्त्रों का ज्ञाता में कैसे निंदा कर सकता हूं | व्यापारी बोला - वाह मित्र! तुम्हारी ज्ञान ने तो मेरी लुटिया डुबो दी |
मोरल : यदि आपके ज्ञान से किसी का अहित होता है तो आपका ज्ञान किसी काम का नहीं है |
3- ईमानदारी का फल
गोपाल एक गरीब लकड़हारा था | वह रोज जंगल में जाकर लकड़ियां काटता था और शाम कों बाजार में बेच देता था | लकड़ियों को बेचने से जो पैसे मिलते हैं उन्हीं से उसके परिवार का गुजर-बसर होता था |
एक दिन गोपाल जंगल में दूर तक निकल गया | वहां उसकी दृष्टि नदी के किनारे एक बड़े पेड़ पर पड़ी | उसने सोचा कि आज उसे बहुत सारी लकड़ियां मिल जाएंगी | वह अपने कुल्हाड़ी लेकर उस पेड़ पर चढ़ गया | अभी उसने एक डाल काटना शुरू ही किया था कि अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूट गई और नदी में जा गिरी | गोपाल झटपट पेड़ से नीचे उतरा और नदी में अपने कुल्हाड़ी ढूंढने लगा | उसने बहुत कोशिश की, पर कुल्हाड़ी उसके हाथ ना लगी | उदास होकर वह पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया |
इतने में एक देवदूत वहां आ पहुंचा | उसने गोपाल से उसके उदासी का कारण पूछा | गोपाल ने देवदूत को कुल्हाड़ी नदी में गिर जाने के बाद बताई | देवदूत ने उसे धीरज बांधते हुए कहा "घबराओ मत, मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी निकाल दूंगा |"
यह कहकर देवदूत ने नदी में डुबकी लगाई | वह सोने की कुल्हाड़ी लेकर बाहर निकला | उसने गोपाल से पूछा " क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है |" गोपाल ने कहा, " नहीं महाराज, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है |" फिर दूसरी बार डुबकी लगाकर देवदूत ने चांदी की कुल्हाड़ी निकाली | तब भी लकड़हारे ने इनकार करते हुए कहा, "नहीं, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है |" देवदूत ने फिर डुबकी लगाई | इस बार उसने नदी से लोहे की कुल्हाड़ी निकाली | उस कुल्हाड़ी को देखते ही गोपाल खुशी से चिल्ला उठा, " हां महाराज, यही मेरी कुल्हाड़ी है |"
गोपाल की इमानदारी पर देवदूत बहुत खुश हुआ | लोहे की कुल्हाड़ी के साथ-साथ सोने और चांदी की कुल्हाड़ीया भी देवदूत ने गोपाल को इनाम में दे दी | गोपाल ने देवदूत का बड़ा आभार माना |
सीख : ईमानदारी एक अच्छा गुण है | ईमानदारी का फल मीठा होता है|
4- परिश्रम ही धन है
सुंदरपुर गांव में एक किसान रहता था | उसके चार बेटे थे | वे सभी आलसी और निकम्मे थे | जब किसान बूढा हुआ तो उसे बेटों की चिंता सताने लगी |
एक बार किसान बहुत बीमार पड़ा | मृत्यु निकट देखकर उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया | उसने उस चारों को कहा " मैंने बहुत सा धन अपने खेत में गाड रखा है | तुम लोग उसे निकाल लेना |" इतना कहते-कहते किसान के प्राण निकल गए |
पिता का क्रिया- कर्म करने के बाद चारों भाइयों ने खेत की खुदाई शुरू कर दी | उन्होंने खेत का चप्पा - चप्पा खोद डाला, पर उन्हें कहीं धन नहीं मिला | उन्होंने पिता को खूब कोसा | वर्षा ऋतु आने वाली थी | किसान के बेटो ने उस खेत में धान के बीज बो दिए | वर्षा का पानी पाकर पौधे खूब बढे | उन पर बड़ी-बड़ी बाले लगी | उस साल खेत में धान की बहुत अच्छी फसल हुई |
चारों भाई बहुत खुश हुए | अब पिता की बात का सही अर्थ उनकी समझ में आ गया | उन्होंने खेत की खुदाई करने में जो परिश्रम किया था, उसी से उन्हें अच्छी फसल के रूप में बहुत धन मिला था |
इस प्रकार श्रम का महत्व समझने पर चारों भाई मन लगाकर खेती करने लगे |
सीख : परिश्रम ही सच्चा धन है |
5- सियार की बुद्धिमानी
एक समय की बात है कि जंगल में एक शेर के पैर में कांटा चुभ गया | पंजे में जख्म हो गया और शेर के लिए दौड़ना असंभव हो गया | वह लंगड़ाकर मुश्किल से चलता | शेर के लिए तो शिकार करने के लिए दौड़ना जरूरी होता है | इसलिए वह कई दिन तक कोई शिकार न कर पाया और भूखा मरने लगा|
कहते हैं कि शेर मरा हुआ जानवर नहीं खाता, परंतु मजबूरी में सब कुछ करना पड़ता है | लंगड़ा शेर किसी घायल अथवा मरे हुए जानवर की तलाश में जंगल में भटकने लगा | यहां भी किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया | कहीं कुछ हाथ नहीं लगा |
धीरे-धीरे पैर घसीटता हुआ वह एक गुफा के पास आ पहुंचा | गुफा गहरी और संकरी थी, ठीक वैसी जैसे जंगली जानवरों के मांद के रूप में काम आती है | उसने उसके अंदर झांका मांद खाली थी पर चारों ओर उसे इस बात के प्रमाण नजर आए कि उसमें जानवर का बसेरा है | उस समय वह जानवर शायद भोजन की तलाश में बाहर गया हुआ था | शेर चुपचाप दुबककर बैठ गया ताकि उसमें रहने वाला जानवर लौट आए तो वह उसे दबोच लें |
सचमुच उस गुफा में सियार रहता था, जो दिन को बाहर घूमता रहता और रात को लौट आता था | उस दिन भी सूरज डूबने के बाद वह लौट आया | सियार काफी चालाक था | हर समय चौकन्ना रहता था|
उसने अपनी गुफा के बाहर किसी बड़े जानवर के पैरों के निशान देखे तो उसे शक हुआ कि कोई शिकारी जीव मांद में उसके शिकार की आस में घात लगाए न बैठा हो | उसने अपने शक की पुष्टि करने के लिए सोच विचार कर एक चाल चली | गुफा के मुहाने से दूर जाकर उसने आवाज दी " गुफा! ओ गुफा |"
गुफा में चुप्पी छाई रही उसने फिर पुकारा " अरी ओ गुफा, तू बोलती क्यों नहीं? "
भीतर शेर दम साधे बैठा था | भूख के मारे पेट कुलबुला रहा था | उसे यही इंतजार था कि कब सियार अंदर आए और वह उसे पेट में पहुंचाए | इसलिए वह उतावला भी हो रहा था | सियार एक बार फिर जोर से बोला " ओ गुफा! रोज तो मेरी पुकार के जवाब में मुझे अंदर बुलाती है | आज चुप क्यों है? मैंने पहले ही कह रखा है कि जिस दिन तू मुझे नहीं बुलाएगी, उस दिन मैं किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा | अच्छा तो मैं चला |"
यह सुनकर शेर हड़बड़ा गया | उसने सोचा शायद गुफा सचमुच सियार को अंदर बुलाती होगी | यह सोचकर कि कही सियार सचमुच न चला जाए, उसने अपनी आवाज बदलकर कहा " सियार राजा, मत जाओ अंदर आओ न| मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी|"
सियार शेर की आवाज पहचान गया और उसकी मूर्खता पर हंसता हुआ वहां से चला गया और फिर लौटकर नहीं आया | मूर्ख शेर उसी गुफा में भूखा - प्यासा मर गया |
सीख : सतर्क व्यक्ति जीवन में कभी धोखा नहीं खाता |
